तपती दोपहरी सड़के सुन सान जैसे सन्नाटा पसारा हो सूर्य देव कि भृगुटी ढेड़ी पुरे ब्राह्मण्ड से सूर्य देव कुपित हो कभी कभार सड़क पर मजदूर मजबूर जिनका अंगार उगल रही गर्मी में भी पेट ज्वाला शांत करने के लिए बाहर निकलना विवशता थी नजर आते जैसे सीधे सारे पाप धोने के लिए गंगा स्नान करके जा रहे हो और बदन से गंगा कि बुँदे पसीने कि बूंद ओस कि सबनम जैसे टपक रही है पसीना पोछते परमात्मा से राहत कि उम्मीद कि गुहार करते आते जाते दिख जाते!मै भी वेवसी लाचारी के हालात के कारण आग उगलते सूर्य कि