रात के सन्नाटे में घड़ी की टिक-टिक और अलमारी में रखी माँ की हरे काँच की चूड़ियों की धीमी खनक… बस यही दो आवाज़ें थीं जो राघव के कमरे में बची रह गई थीं। आज माँ को गए पूरे तीन महीने हो गए थे, लेकिन राघव का दिल अब भी उसी मोड़ पर अटका था — उस आखिरी सुबह पर, जब माँ ने उसके माथे पर हाथ फेरा था और कहा था, "जल्दी लौट आना बेटा, अकेलापन अब काटता नहीं..." राघव, दिल्ली की एक बड़ी IT कंपनी में सीनियर डेवलपर था। पैसों की कमी नहीं थी, लेकिन वक्त की बहुत