ब्रह्म मुहूर्त मे यज्ञदत्त ने निद्रा का त्याग किया। सोमदेवा भी जग गई। जगने के साथ उसकी दृष्टि अग्निशर्मा के बिछौने पर गई। अग्निशर्मा को बिछौने में न देखकर वह चौंक पड़ी : 'अरे, अग्नि कहाँ गया अकेले !' 'मैं भी अभी ही जगा हूँ। देखता हूँ... शायद पीछे बाड़े में गया हो!' यज्ञदत्त परमात्मा का नामस्मरण करते हुए पिछवाड़े के बाड़े में गये। सोमदेवा दीपक ले आई। सारा बाड़ा देख लिया। परंतु उन्हें अग्नि दिखाई नहीं दिया। सोमदेवा की आँखें गीली हो गई... उसका स्वर करुण हो उठा। 'ओफ्फोह... आज मुझे कैसी गहरी नींद आ गई?' 'मेरी भी एक ही नींद में सुबह