काफला यूँ ही चलता रहा - 3

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काफला यूँ ही चलता रहा... (3)उपन्यास मे लिखना जरूरी बनता है, मुठी कस कर बंद कर लो, फिर खोलो.... ये क्रोध को भगाने का तरीका है,अगर गुस्सा आये ही न... तो तुम आपने आप को नपुस्क ही समझो।                 दुनिया कैसे समझेगी, ये मत सोचो। ये सोचो तुम कया सोच रहे हो... जम कर मिले, खूब मिले, चितामनी बहुत खुश था, अशोक दा आया था, मिलने को।" लोडियाबाज़ी छोड़ दी" चितामनी ने टिचर की ..." बहुत कर लीं... हम जैसा कोई जमा है, कोई कहे तो कहे, तुम कहते अच्छे नहीं लगे। " चिंतामनी ने सुन कर जोर का दहाका लगा दिया।"एक