डाली से बिछड़ी मां

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वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानीअंधेरे घुप घर में सन्नाटा भाऐं-भाएं कर रहा था। डाली से बिछड़ी मां बेहोश पड़ी थी। वह मौत के बेहद क़रीब पहुंच चुकी थीं। फोन में से शमशान घाट में भोंकते हुए कुत्तों जैसी ध्वनि पैदा हो रही थी। वह हड़बड़ा गई, उन्होंने जल्दी से अपने को समेटा, हिम्मत पैदा की। वह किस समय बेहोश हुई थी, यह तो बिजली वाले ही जानते थे, क्योंकि बिजली के जाते ही वह अपने घर में भटक गईं थी। फोन ही उनका संकट मोचन था जिसे ढूंढने में वह गिर पड़ी थी और चोटिल हो गई थी।उन्होंने सवेरे से कुछ