सफ़ाई

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उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा, दिमाग़ जैसे कनखियों माध्यम से सामने वालों के हाथों पर टिका है। अधिकतर सभी मज़बूत काठीवाले सांवले मूँछों वाले हैं। उस बड़े चबूतरे को तीनों और से घेरे बैठे हैं। किसी के हाथ में लाठी है, किसी के हाथ में बरछा, किसी के हाथ में चाकू है। कोई कोई तो घास काटने वाली खुरपी या फावड़ा तक लिए बैठा है। बस एक बात सब में कॉमन है -सबकी आखों में बाज जैसी चमक है। सबके हाथ अपने हथियारों पर कसे हुए हैं कब जाड़ेजा साहब का हुक्म हो और वे अपने शिकारों पर टूट पड़ें।