गाजर के हलवे की कटोरी हाथ में लिए वो सिर झुकाए खड़ी थी कि सामने जो हस्ती थी उससे नजरे मिलाने से वो कतराती थी, कुछ डर की वजह से तो कुछ उन आँखों की कशिश ही ऐसी थी। अभी वो सोच ही रही थी कि क्या बोले उससे पहले सामने से एक दमदार मगर तहजीब से भरी आवाज आयी थी जो यकीनन सोफ़े पर बैठे उस शख़्स की ही थी। " क्या है यह ? " काँच की कटोरी में हलवा साफ दिख रहा था उसने फिर भी यह सवाल किया। " जी...जी खी..खीर है। " उसने डरते डरते जवाब दिया।