12.विकारों से बचावकस्तरति कस्तरति मयाम् ? यः संगांस्त्यजति, यो महानुभावं सेवते, निर्ममो भवति॥४६॥अर्थ : कौन तरता है, कौन तरता है माया से ? जो सब संगों का त्याग करता है, जो महापुरुषों की सेवा करता है, जो ममता रहित होता है।पिछले सूत्र में नारद जी ने बताया कि कैसे विकार एक तरंग की भाँति भीतर प्रवेश करते हैं और समुद्र बन जाते हैं, अब इस सूत्र में वे इस विकारी और मायावी समुद्र से बाहर निकलने का मार्ग बता रहे हैं।वे कहते हैं, इस माया से वही तर सकता है, वही इसकी भँवर से बाहर आ सकता है, जिसमें कुछ