अध्याय 1: तन्हाईयों की छाँव मेंकुछ कहानियाँ ज़ोर से नहीं बोली जातीं, बस चुपचाप जी जाती हैं। ये कहानी भी कुछ वैसी ही है — एक ऐसी स्त्री की, जिसने जीवन को सिर्फ निभाया नहीं, बल्कि हर दिन एक नयी लड़ाई की तरह जिया।उसके जीवन के शुरुआती सालों में सपने भी थे और कुछ नियम भी — कि शादी एक पवित्र रिश्ता होगा, जिसमें वो पूरी तरह समर्पित रहेगी, और अपने पति से बेपनाह प्यार करेगी। लेकिन जिन्दगी की ज़मीनी सच्चाइयाँ अक्सर किताबों से अलग होती हैं।विवाह के कई वर्षों तक उसका जीवन जैसे एक बंद दरवाज़े के पीछे कैद