खाली कुर्सी

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सूरज की रोशनी खिड़की से छनकर कमरे में आ रही थी। कमरे के कोने में रखी एक पुरानी लकड़ी की कुर्सी पर अब धूल जम चुकी थी। ये वही कुर्सी थी जिस पर हर सुबह रामकिशan जी बैठा करते थे — अख़बार पढ़ते, चाय पीते और कभी-कभी अपनी बीवी से हल्की-फुल्की तकरार भी किया करते थे।अब उस कुर्सी पर कोई नहीं बैठता।रामकिशan जी अब इस दुनिया में नहीं रहे।उनकी पत्नी, शारदा देवी, अब भी हर सुबह उठती हैं, रसोई में जाकर दो कप चाय बनाती हैं — एक अपने लिए और एक उस खाली कुर्सी के लिए। हर सुबह वो