-------------------------------------------- हर शहर में सिनेमाहाल होते थे जो एक जमाने में इतना चलते थे कि टिकिट के लिए लंबी लाइनें लगती थीं। शो छूटता तो ट्रैफिक जाम होता पर फिर भी लोग शांति से धीरे धीरे फिल्म की गुनगुनी, प्यारी बातों को लेकर निकल जाते। फिर वह बातें हफ्ते दस दिन तक घर, दफ्तर, स्कूल में चर्चा का विषय रहती । आज के मल्टीप्लेक्स के दर्शक यह बात नहीं समझेंगे कि कभी फिल्म देखना एक पारिवारिक उत्सव होता था। जिसमें इंटरवेल में चाय, समोसा, पेस्ट्री, लिम्का, गोल्ड स्पॉट सीट पर ही मिलते थे। वह भी उसी दाम पर जो बाहर