16 ----- बाजार की ये अनमोल किश्त ---- अंधेरा इसके बाद रोशनी... फिर अंधेरा। ऐसे ही जीवन चलता जाता हैं... कही भीड़ थी अब नहीं हैं। जानते हो जो लोग तुम्हे नफ़रत करते हैं, वो कभी भी तुम्हारा भगवान से बुरा माँग भी सकते हैं। बहुत कम लोग अच्छे होते हैं... जिनका कोई मतलब नहीं होता... ज़िन्दगी एक सड़क की तरा हैं.. ठिकाना समझ के मत बैठो, बना कर बैठो... जो करने आये हो करो ? रुको मत... चलो बस... चलते चलो बस।सूद खाने वाले किसी को नहीं बख्शते.. चाये वो नाग से ही समझौते कर के भी उसे मार देंगे। कहना चाहता हूँ,