मुझे लगता है... मेरे भीतर कुछ छुपा है।एक दर्द... जो कुछ कहना चाहता है,पर शब्दों से नहीं — सिर्फ ख़ामोशी से बोलता है।जब भी "अगर तुम साथ हो" सुनती हूँ,मैं बस चुप रह जाती हूँ।पर अब, मैं उसे बाहर निकालना चाहती हूँ।इस जन्म में, मैं सिर्फ दर्द से प्रेम नहीं करना चाहती...मैं उस प्रेम को जीना चाहती हूँ — जो दर्द के पार है।शायद मैं खुद को ही बहुत वक़्त से नहीं सुन पाई थी।अब मैं चाहती हूँ, कोई गीत गुनगुनाना —"फिर ले आया दिल"खुद के लिए, किसी और के लिए...या शायद उसके लिए — जो कहीं आँसू बहा रहा