मैं सिर्फ आरव था

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जब आरव पाँच साल का था, तब उसकी माँ ने पहली बार उससे कहा, "बेटा, ज़रा ऐसे बैठो, आँखें बंद कर लो और मुस्कराते रहो।" आरव को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन उसने वैसा ही किया जैसा माँ ने कहा। माँ ने उसके सामने एक छोटी सी दरी बिछा दी थी, कुछ फूल और मिठाइयाँ रख दी। थोड़ी ही देर में तीन-चार औरतें आईं, जिनमें से एक ने आरव के पैर छुए और बोली, "देखो कितना दिव्य बच्चा है। इसकी आँखों में भगवान बसते हैं।"आरव डर गया। वो समझ नहीं पा रहा था कि क्या हो रहा है। उसकी माँ