बदलाव की आंधी

गाँव की टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों पर चलते हुए सौरभ के कदम अचानक ठिठक गए। सामने वह पुराना पीपल का पेड़ खड़ा था, जिसकी छांव में कभी वह अपने दोस्तों के साथ बैठकर किस्से-कहानियाँ सुनता था। आज पाँच साल बाद वह अपने गाँव लौटा था – वही गाँव जहाँ उसकी जड़ें थीं, जहाँ उसके बचपन की स्मृतियाँ अब भी मिट्टी में रची-बसी थीं।पर आज कुछ बदल गया था। न वह गाँव पहले जैसा था और न सौरभ। सड़कें अब पक्की हो गई थीं, पुराने कच्चे मकानों की जगह सीमेंट की इमारतों ने ले ली थी। लेकिन बदलाव सिर्फ बाहर नहीं, भीतर भी