फूल, जो कभी खिल न सका

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प्रस्तावना – लेखिका की ओर से"फूल, जो कभी खिल न सका" एक ऐसी लड़की की कहानी है, जो जन्म से ही बोझ समझी गई, पर सपने बोझ नहीं, पंख बनकर उड़े।यह उपन्यास केवल फूल की नहीं, हर उस लड़की की आवाज़ है जिसे कभी बोलने की इजाज़त नहीं मिली, हर उस माँ की भावना है जिसने बेटी को जीते हुए मरा देखा, और हर उस समाज का आईना है जो इज़्ज़त के नाम पर इंसानियत को मिटा देता है।फूल मिट्टी में मिली, पर उसकी गवाही हवा में बसी।यह उपन्यास नफरत की चुप्पी के बीच एक छोटी सी आवाज़ है —