हनुमान बाहुक रह्स्य –प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा ८ अंतिम ८ यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।(७१)दछिन को कियो पयान हदे राख रामराय, दछिन के कर को मुद्रिका तू पायो है।अंगदादि वीर जामवन्त सब प्यासे मरें, विवर में पैठ क्षुधा तृषा तू बितायो है।निकट नदीस के संपाति से बचाय कीस, सिय सुध पायवे को परत जनायो है।लांघत न लागी बार पलही