अध्याय 1: “खून का पाठ” मुंबई की भीड़ फिर अपने शोर में लौट चुकी थी। पर अर्जुन मेहरा की दुनिया अब भी उसी अजीब सी चुप में उलझी हुई थी, जो उसने पिछली रात महसूस की थी। उसका कमरा एक लेखक की कल्पना से ज़्यादा, एक साज़िश की प्रयोगशाला बन चुका था – दीवारों पर टंगे नोट्स, फटे हुए काग़ज़, और बीच में धुआँ उड़ाता कॉफी का प्याला। अर्जुन अपनी डायरी में सिर झुकाए लिख रहा था – "मगरमच्छ ने बंदर को नहीं मारा… बंदर ने मगरमच्छ को मरवाया।" उसने कल रात ‘बंदर और मगरमच्छ’ वाली पंचतंत्र की कहानी को बार-बार