पुर्णिमा - भाग 5

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विचारों के भंवर में डूबी शशि कमरे में बैठी थीं। ये  अमावस्या का कैसा साया है जो शशि के जीवन में अंधकार फैल रहा था।कभी सोचा ना था उसने की जिंदगी में ऐसा भी मोड आएगा जहां वह अपराधी ना होते हुए भी अपराधी की तरह कटघरे में खड़ी रहेगी।अपने मुकदमे की पेरवी  भी उसे खुद ही करनी होगी।दूसरों को न्याय देने वाली जज आज अपने लिए न्याय नहीं कर पा रही थी ।उसने सोचा न था की पढ़े लिखे लोगों की सोच भी ऐसी होती है।रीति रिवाज और परंपरा के नाम पर किसी अजन्मे की बाली चढ़ने वाली थी।आज