कपास का भूत

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बस बुरी तरह से भरी हुई थी। ऊपर, पीछे, दरवाजों पर लोग लटके हुए थे। अंदर तीन की सीट पर पांच- पांच ठुंसे हुए। ढेरों खड़े हुए।कुछ दूरी पर खड़े हुए जब मैंने इस बस को छोड़ देने का मन बना लिया तो मुझे हंसी आ गई।अकेले खड़े- खड़े हंसने के पीछे वो दृश्य था जो मैंने अभी कुछ देर पहले ही देखा था।टिकिट बूथ पर एक छोटे से लड़के ने भीतर बैठे आदमी से पूछा था- अंकल, तानसेन नगर की बस कहां से मिलेगी?आदमी ने बड़ी ज़िम्मेदारी से कहा- अभी कोई बस स्टेंड के भीतर नहीं आ रही है,