11.विकारों का प्रभावकामक्रोध मोहस्मृतिभ्रंश बुध्दिनाशसर्वनाश कारणत्वात् ||४४||अर्थ : काम, क्रोध, मोह, स्मृतिभ्रंश, बुद्धिनाश ये सर्वनाश का कारण है।।४४||पिछले कुछ सूत्रों से नारद जी भक्ति बढ़ाने के साधन बता रहे हैं और उसमें एक प्रमुख साधन है, कुसंग का त्याग। क्योंकि कुसंग करने से इंसान के अंदर विकार बढ़ते हैं। काम, क्रोध, मोह, लोभ, निराशा, संशय, घमंड आदि विकार हमारी स्मृति और बुद्धि का नाश करते हैं। विकारी मनुष्य सही-गलत में फर्क नहीं समझता, जिस कारण वह स्वयं का अहित कर डालता है। ४३ वें सूत्र में नारदजी बाहरी कुसंग की बात करते हैं तो ४४ वें सूत्र में आंतरिक कुसंग