नारद भक्ति सूत्र - 9. श्रवण, कीर्तन, भजन से भक्ति में बढ़ोत्तरी

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9.श्रवण, कीर्तन, भजन से भक्ति में बढ़ोत्तरीअव्यावृत भजनात् ||३६||अर्थ : (अथवा) अखंड भजन से ।। ३६ ।।नारदजी भक्ति बढ़ाने का एक साधन अखंड भजन बताते हैं। अखंड भजन यानी हमारे भीतर निरंतरता से चलने वाला ईश्वर भजन। यहाँ पर भजन का अर्थ न पकड़ें। हमारे भाव, विचार, वाणी, क्रिया से अगर हम ईश्वर के ध्यान में डूबे हैं, उसी के बारे में सोच रहे हैं, बोल रहे हैं या सुन रहे हैं तो यह अखंड भजन या अखंड जाप ही है।जैसे यदि किसी प्रेमिका का प्रेमी किसी दूसरे नगर गया है। वैसे तो वह अपने घर के कामकाज़ कर रही