8.भक्ति बढ़ाने के साधनतस्याः साधनानि गायंताचार्याः ||३४||अर्थ : उस (भक्ति) को प्राप्त करने के साधन बताते हैं ।। ३४।।जैसा कि आपने पिछले सूत्रों में भी पढ़ा भक्ति साधन नहीं, मंज़िल है। भक्ति की उच्चतम अवस्था में भक्त और भगवान का भेद मिट जाता है यानी भक्त स्वअनुभव पा लेता है। लेकिन भक्ति, भाव की बात है और भाव किसी भी मायावी कारण जैसे सत्वगुणी अहंकार, शंका, संशय, विकार आदि से ऊपर-नीचे हो सकता है। इसलिए भक्ति की अवस्था को बरकरार रखने एवं उसे बढ़ाने के लिए कुछ साधनों का सहयोग लिया जा सकता है। ये साधन भक्तों के भीतर भक्ति