नारद भक्ति सूत्र - 2. भक्ति पाकर कैसी दशा होती है

  • 627
  • 219

2.भक्ति पाकर कैसी दशा होती हैयत्प्राप्य न किञ्चिद्वाच्छति, न शोचति, न द्वेष्टि, न रमते, नोत्साही भवति ||५|| अर्थ : उस भक्ति के प्राप्त होने पर ना किसी वस्तु की इच्छा करता है, ना शोक करता है, ना द्वेष करता है, ना विषयों में रमण करता है। तथा ना ही विषयों के प्राप्त करने का उत्साह ही करता है।प्रस्तुत भक्ति सूत्र में नारद जी ने परमभक्ति को प्राप्त भक्तों के जिन-जिन लक्षणों का वर्णन किया है, उनके विपरीत लक्षण संसारियों में पाए जाते हैं। एक संसारी इंसान कैसा होता है? उसके भीतर दिन प्रतिदिन नई-नई इच्छाएँ जगती रहती हैं– कभी गाड़ी, घर, मोबाइल,