1. भक्ति अमृत रूपी प्रेम हैअथातो भक्ति व्याख्यास्यामः।।1।। सा त्वस्मिन परम प्रेमरूपा ।।2।।अर्थ : अब भक्ति की व्याख्या करता हूँ।।१।। वह तो ईश्वर में परम प्रेम रूपा है।।२।।पहले सूत्र में नारदजी कहते हैं, 'मैं भक्ति की व्याख्या करता हूँ' तो भक्ति की व्याख्या कौन कर सकता है? वही जो स्वयं भक्ति का स्वरूप हो, उसका स्त्रोत हो। स्वयं गंगा से ही गंगाजल प्राप्त हो सकता है। इसीलिए नारद के बताए सूत्रों का महत्त्व है क्योंकि भक्ति के वे सूत्र एक परम भक्त से आ रहे हैं।दूसरे सूत्र में नारद भक्ति को 'ईश्वर में परम प्रेम' स्वरूप बता रहे हैं। इसलिए भक्ति को