मोहराजा को ह्रदय से निकालकर यदि धर्मराजा यानी अरिहंत प्रभु को ह्रदय के सिंहासन पर बिठा दे फिर भी परमात्मा की आज्ञा आखिर क्या कैसे पता चलेगा?जिज्ञासु आत्मा को सद्गुरु संक्षेप में परमात्मा की आज्ञा समझाते हैं. अवर अनादिनी चाल नित-नित तजीएजी’ अर्थात् साधना किए बिना मन-वचन और काया की प्रवृत्ति सहजरूप से जो भी होती है, वह अनादि की चाल-चलन है. वह सब कुछ मोहराजा की फरमाइश, मोहराजा की आज्ञा का प्रताप है. उसका संपूर्ण बहिष्कार करो, त्याग करो और यथा संभव उससे विपरीत करो, यह जिनेश्वर भगवान की आज्ञा है. ‘अवर अनादिनी चाल नित-नित तजीएजी’पूज्य श्री कहते हैं कि