एक चिंगारी

सूरजपुर—नाम सुनते ही मन में उजाले का एहसास होता था, लेकिन हकीकत में ये गाँव अब भी अंधेरे में डूबा था। ये अंधेरा बिजली के न होने का नहीं था, बल्कि सपनों की कमी का, शिक्षा की कमी का, और सबसे ज़्यादा, उम्मीद की कमी का था।गाँव छोटा था, सीधा-सादा, लेकिन ज़िंदगी ठहर सी गई थी। खेतों में हल चलाने वाले हाथों ने कभी किताब नहीं उठाई थी। बच्चे वही करते जो उनके माता-पिता करते आए थे—खेत, पशु और मेहनत। स्कूल जाना एक सपना था, और पढ़-लिख कर कुछ बनना तो जैसे किस्मत वालों की बात मानी जाती थी।इसी गाँव