नारी-वेदना

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सही ही कहा गया है शायद बेटियों के कोई घर नहीं होते | पैदा होने से लेकर शादी तक उनके माँ बाप यही कहते नहीं थकते कि जो भी है शादी के बाद करना जाकर अपने घर में , उधर शादी के बाद सास-ससुर का रोना कि अपने घर से कुछ सीखकर नहीं आई, आधी से ज्यादा जिन्दगी यह सुनते गुजर जाती है कि फिर बची कुची जिन्दगी में पति के हिसाब से चलाना सीख ही रही होती हैं कि बच्चे बड़े हो गए अब उनके हिसाब से जिंदगी अपना रूप लेना शुरू कर देती है | जब शरीर में