वचन दिए तो मुकुट उतारा,राजसुखों को सहज संवारा।छाल वसन पहना व्रत लेकर,मर्यादा का दीपक निखारा।सिंह-चरण से पथ आलोकित,धूलि-धूसरित व्रज मृदु रोहित।धीरज, त्याग, धर्म का पावन,सौरभ भरता जीवन-भावन।वन पग-पग पर प्रेम बरसता,दुःख में भी मुस्कान तरसता।भ्रातृ प्रेम का दीप जलाया,सब विधि जीवन को समझाया।शत्रु-संग भी नीति निभाई,वचन-बंध में गाथा गाई।सत्यधर्म का सिंह पुकारा,रघुकुल रीति अमर उजियारा।धन्य है राम का तप-स्वभाव,जो भी मिले, उसे दिखलाए राग।वनवास के पथ पर न हारे,धरती पर सूर्य जैसे न्यारे।धन्य है सीता की आभा,पतिव्रता धर्म की परिभाषा।राम का साथ, सच्ची नारी,शिव के जैसी शक्ति भारी।लक्ष्मण सखा, राम का वीर,निश्छल प्रेम से भरपूर प्रीत।धन्य है उनका संग साथ,जो