एक फैसला... दो ज़िंदगियाँ खत्म

अपराजिता, अपने पिता की आँखों का तारा थी। उसके जन्म से ही उसके पिता ने ठान लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए, वो अपनी बेटी को दुनिया की हर खुशी देंगे। उन्होंने खुद के सपनों को दफन कर दिया था ताकि अपराजिता के सपनों को ऊँचाई मिल सके।अपराजिता को हमेशा सबसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया गया, सबसे अच्छी किताबें दी गईं, और हर वह चीज़ दी गई जो एक पिता अपने बच्चे के लिए सोच सकता है। वो हमेशा कहते थे,"मेरी बेटी अपने पैरों पर खड़ी होगी, किसी पर निर्भर नहीं रहेगी।"समय बीता, अपराजिता ने पढ़ाई पूरी की।