७ हनुमान बाहुक रह्स्य –प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा ७ यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।(६१){खेमराज श्रीकृष्णदास बम्बई छापा में (३१)}{गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (२३)}राम को सनेह राम्, साहस लखन, सीय राम की भगति सोच संकट निवारिये।मुद-मरकट रोग-वारिनिधि हेरि हारे,जीव जामवन्त को भरोसो तेरौ भारिये। कूदिये कृपालु तुलसी सुप्रेम पर्वत तें, सुथल सुबेल भाल, बैठ के विचारिये।महावीर बांकुरे, बराकी बाहुपीर क्यों