४ हनुमान बाहुक रह्स्य –प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा ४ यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।(३१){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (१८)}सिन्धु तरे बड़े वीर दले खल जारे हैं लंक से बंक मवासे।तैं रन केहरि केहरि के बिदले अरिकुंजर छैल छवा से।तोसो समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी दुख दोष दवा से। वानर बाज़ बड़े खल खेचर लीजत क्यों न लपेट लवा से।हनुमान आपने