हनुमान बाहुक रह्स्य –प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा ३ ३ यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।२१){गीता प्रेस गोरखपुर छन्द क्र (८)}दूत रामराय को तू सपूत पूत पौन को, तू अंजनी को नंदन प्रताप भूरि भानु सो।सीय-सोच-समन दुरित-दोष-दमन् सरन आये अवन लखन प्रिय प्रान सो।दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रगट तिलोक ओक तुलसी निधान सो।ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहिब