२ हनुमान बाहुक रह्स्य –प.गंगाराम शास्त्री समीक्षा २ २यह पुस्तक संस्कृत और तंत्र के बड़े विद्वान पण्डित गङ्गाराम शास्त्री जी सेंवढ़ा वालों द्वारा गहरे रिसर्च, अध्य्यन, अनुशीलन,खोज, अनुसंधान, तपस्या और प्रयोगों के बाद लिखी गयी है। इसमें बताये गये अर्थ और प्रयोग आम जनता को कृपा स्वरूप ही विद्वान लेखक ने पुस्तक स्वरूप में प्रदान किये हैं।११)राखु प्रतीति हृदै करि प्रीति अभीति कपीस पदे अनुरागू । सोच दुराय सुनाय विनै तुलसी मन भावत सो वर मांगू । मोह नसावन पावन रूप उलंघित वारिधि बार न लागू । गावत ही यश वायु तनै रुजपुंज हरे दल दोष दवागू।कपीश हनुमान के प्रति विश्वास रख कर हृदय