वो आखरी फोन कोल...

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मुझे आजभी याद हे, वो एक फोन कोलने मेरी पूरी झींदगी बदल दी थी।बदल क्या दी ,बचा ली थी।          झींदगी से हार कर एकबार रीया खुद को खतम करने जा रही थी। रोती हुई सहेमी सी रीया ,ट्राफीक से भरी सडको पे पर पूरे संसार मे बिलकुल अकेली ....अपने पापाको याद कर के रो रही होती हे की, काश, पापा आज आप जिंदा होते तो बता पाती मै भी के ....बाप के मरने के साथ साथ बेटी का वजूद भी मर जाता है....अपने ससुराल मे....वो थक जाती है....restart...restart.....कहेते और करते हुए।रोते रोते बस चलती जा रही