मंजिले - भाग 27

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समय मंजिले कहानी सगरहे की सर्वकोटी कहानी हैं।जो बताताती हैं सत्य की परिभाषा....मोहन दास के पोता हुआ, तो वो खूब ढोलक पे नाचा। उम्र उसकी होंगी अस्सी के करीब... पर डील डोल उसका मजदूर का एक नंबर था। कभी उसने आराम भी नहीं किया था।कयो किस्मत मे नहीं था। छोटा सा घर इलाहबाद मे कराये से आपना बनाया। फिर मछली पकड़ के मंडी मे सस्ते कभी महगें  वेचा.. फिर नल और गटर भी साफ किये.। काम को पूजा समझने वाला मोहन दास कभी निठला नहीं बना। साथी थे उसके जो अक्सर एक दो देहाड़ी लगा कर जुआ खेल लेते थे।