मां के बाद

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दरवाज़े पर ताला देख कर याद आया, मां अब नहीं हैं और घर की चाबियां मेरे स्कूल बैग में थीं। अपने उस सातवें साल तक पहुंचते- पहुंचते मैं काफ़ी कुछ सीख-समझ चुका था। खाना बनाने के सिवा। पहला कमरा मेरा था। मां की बीमारी से पहले वह कमरा समान रूप से मां का और मेरा सांझा अंश रहा था। अपने शयनकक्ष की चाबी पापा अपने पास रखते।तब  भी और अब भी। अपने बिस्तर पर अपना बैग फेंक कर मैं रसोई में जा पहुंचा। खाने की मेज़ खाली थी। मेज़ के सुबह वाले कैैसेरोल और बर्तन धुले बर्तनों में मौजूद थे।