धुंआ

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भूमिका(‘धुंआ’ – एक प्रतीकात्मक कथा)कभी-कभी सबसे गहरी बातें सड़कों के शोर में नहीं, बल्कि किसी टपरी की चुप चाय में घुली होती हैं। ‘धुंआ’ ऐसी ही एक बातचीत की कहानी है—सीधी, साधारण, मगर भीतर तक झकझोर देने वाली।यह कहानी दो नौजवानों की नहीं, दो दृष्टिकोणों की है—एक जो जीवन को बहादुरी से देखने का दावा करता है, और दूसरा जो डर को स्वीकारने में समझदारी देखता है। सदर बाज़ार की चाय टपरी पर सिगरेट के धुएं और शब्दों के बीच जो तर्क-वितर्क चलता है, वह दरअसल हमारे समय की उन सच्चाइयों को उजागर करता है जिन्हें हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर