परिमल

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                                                                                           ओंकार      चलते चलते एक मंदिर के सामने अचानक मेरे पैर रुक गए। अंदर से ओंकार धुन का नाद सुनाई दे रहा था। एक लय, ताल में छोटे से बडे बुढों तक, तन्मयता से ओंकार धुन का उच्चारण कर रहे थे। सबके चेहरे पर एक अगम्यता का भाव स्पष्ट रुप से दिखाई दे रहा था।