आतिशी शीशा

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उस वर्ष हमारा दीपावली विशेषांक कहानियों पर केंद्रित था। “दीपावली विशेषांक की कहानियों के साथ जाने वाले रेखांकन तैयार हो गए हैं,” हमारी ‘महिलाओं के लिए’ नाम की पत्रिका के संपादक मेरे कक्ष में ‘मेरी सलाह’ लेने आए थे। हमारी प्रेस के आधुनिकीकरण होते ही मेरी प्रबंधकीय डिग्री व पटुता को देखते हुए मेरे पिता ने मेरे इस छब्बीसवें वर्ष ही में मुझे इस पत्रिका का ‘ सलाहकार ‘ नियुक्त कर रखा था । “कैसे चित्र हैं यह?” चित्र देखते ही मैं खीझा,” “एक भी स्त्री मुस्करा नहीं रही।” “मजबूरी है,भैया जी । इस अंक में सभी कहानियाँ स्त्रियों की