आखिरी खत

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पटना जंक्शन... एक ऐसा नाम जहाँ रोज़ हजारों चेहरे आते-जाते हैं। किसी की आंखों में मंज़िल होती है, किसी की आंखों में जुदाई का ग़म। भीड़ होती है, शोर होता है, धुएँ और धूल की चादर हर चेहरे को ढँक देती है। पर उस दिन, इस शोर के बीच एक चेहरा ऐसा भी था जो खामोशी से लड़ रहा था, भीड़ में होकर भी अकेला था—अनुराग।वो स्टेशन की एक टूटी-सी बेंच पर बैठा था, जहाँ लोग कुछ पल सुस्ताने के लिए रुकते हैं और फिर अपनी राह पकड़ लेते हैं। लेकिन अनुराग की राह कहीं नहीं थी। उसके कदम यहीं