चक्र गर्मी के दिन थे | एक दिन सुबह के वक़्त एक बुलबुल खाने की खोज में भटक रही थी | अब तो सूरज भी चढ़ आया था लेकिन अभी तक उसे कुछ भी खाने को नसीब नहीं हुआ था | भूख की वजह से अब उसका सिर चकराने लगा था | वह घास पर बैठे-बैठे सोच रही थी कि थोड़ी देर में धूप और तेज़ हो जाएगी और फिर भटकना और भी मुश्किल हो जाएगा | क्या उसे आज कुछ भी खाने को नसीब नहीं होगा ? ऐसा सोचते-सोचते अचानक उसकी नज़र एक मोटे से टिड्डे पर पड़ी | हरे