अपनों के लिए

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अपनों के लिए स्वदेश की धरती पर पग धरने को आतुर संदीप आज वर्षों बाद अमेरिका से घर लौटा था| शहर में बहुत कुछ बदला हुया नजर आ रहा था| यहाँ तक की उसकी पुरानी गली भी बूढ़ी आँखों में काजल की रेखा सी नजर आ रही थी| घर के दरवाजे पर भाभी को खड़े न देखा होता तो संदीप को तो अपना ही आशियाना पहचान में नहीं आता| अंदर तो सब कुछ नया था ही | कुछ आराम करने के बाद घर के बरामदे में आया तो उसे अपना ही घर पराया लग रहा था| जहन में पुराना घर