अध्याय चार: अवचेतन मन की शक्ति सुबह की शांति में गूंजती गुरुदेव की आवाज, किसी गहरे सरोवर पर गिरती बूँद जैसी थी—धीरे, पर प्रभावशाली। गुफा में आग की धीमी आँच और बाहर की सफेद दुनिया के बीच बैठा आरव, अब एक साधक बन चुका था—जिसका हृदय जानना चाहता था, और आत्मा बदलने को तत्पर थी। गुरुदेव ने उसकी ओर देखा और बोले, "आज हम बात करेंगे उस शक्ति की, जो तुम्हारे भीतर है, पर तुमने उसे पहचाना नहीं—अवचेतन मन की शक्ति।" आरव ने ध्यानपूर्वक सिर झुकाया। गुरुदेव बोले, "तुम्हारा मन दो भागों में कार्य करता है—चेतन