सुबह-शाम

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सुबह (थोड़ी ताज़गी भरी आवाज़ में):"नमस्ते शाम! मैं फिर से दुनिया को नई उम्मीदों के साथ जगाने आई हूँ।"शाम (हल्की मुस्कराहट के साथ):"नमस्ते सुबह! मैं तो बस दिनभर की थकान को अपनी बाहों में लेकर सुकून देने आई हूँ।"सुबह:"मैं तो हर रोज़ नए इरादों, नए सपनों के साथ आती हूँ। सबको नई ऊर्जा देती हूँ!"शाम:"मैं उन्हीं सपनों का आइना हूँ। जिसने जो किया, मैं उसका हिसाब लेकर आती हूँ — कभी शांति, कभी परेशानी।"सुबह (थोड़ा छेड़ते हुए):"तुम थोड़ी उदास सी क्यों लगती हो हमेशा?"शाम (मुस्कराते हुए):"क्योंकि मैं चुप रहकर भी दिल की सब बातें सुन लेती हूँ। तुम तो सिर्फ