अध्याय (1) मिट्टी में खेलती गुड़ियामैंने माँ को पहली बार तब नहीं देखा जब मैं पैदा हुई,बल्कि तब, जब मैंने उसकी पुरानी फोटो देखी —एक पतली सी लड़की, घुटनों तक फ्रॉक पहने, मिट्टी में बैठकर गुड़िया बना रही थी।हाथों में मिट्टी थी, आँखों में सपने।कभी स्कूल जाना चाहती थी, तो कभी पापा के खेतों में काम करके सबको खुश करना।"बचपन में तेरी नानी मुझे नए कपड़े नहीं दिला पाई," माँ कहती थी,"पर मैं हर त्योहार में अपनी पुरानी फ्रॉक धो के, उसमें फूल टांक के पहन लेती थी…किसी से कम थोड़ी लगती थी।"उसकी कहानी वहीं से शुरू हुई थी —कमियों