आत्मा की खोज - तीसरी आँख से परे - 3

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अध्याय तीन: ब्रह्मांड का रहस्य                           अगली सुबह की पहली किरणें जब हिमालय की बर्फीली चोटियों पर धीरे-धीरे उतर रही थीं, गुफा के भीतर एक सौम्य उजाला फैलने लगा था। गुफा के बाहर, एक चट्टान पर बैठा आरव, अपने भीतर उठते प्रश्नों से घिरा हुआ था। रात भर उसकी चेतना गुरुदेव की एक बात पर अटकी रही थी: “मैं अकेला नहीं हूँ, आरव। मेरे साथ है यह प्रकृति… यह शून्य… और वह चेतना जो सबमें विद्यमान है।” उसकी आँखों में जिज्ञासा थी, और मन में एक बेचैनी—एक अदृश्य उत्तर की तलाश। वह उठकर धीरे-धीरे गुफा के भीतर पहुँचा। गुरुदेव उस