गरिमा यह सब कुछ सहन कर ही रही थी क्योंकि हर्ष का जिस तरह का स्वभाव था उसके कारण यह सब होना कोई बड़ी बात नहीं थी। इस बात को गरिमा भी भली भांति समझ रही थी। उसने सब कुछ समय के ऊपर छोड़ दिया था। वह जानती थी वक़्त सब कुछ ठीक कर देगा। परंतु ठीक कर देगा वाला उसका इंतज़ार बहुत लंबा हो चुका था। उसका इंतज़ार अब कई बार उसे रुलाने भी लगा था। हर्ष की बेरुखी अब उससे सहन नहीं हो रही थी। एक दिन तो गरिमा को बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा यूँ चुपचाप रहने