फ़िर एक बार..... बचपन.....

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एक शाम, जवानी थक कर एक बेंच पर बैठी थी…मोबाइल हाथ में था, नोटिफिकेशन ऑन, लेकिन मन ऑफ।एक अजीब सा खालीपन, हर रोज़ की दौड़, हर पल का प्रेशर।ज़िंदगी जी भी रही थी, और कहीं से छूट भी रही थी।तभी एक हल्की सी आवाज़ आई —“पहचाना मुझे?”जवानी ने पलट कर देखा… एक छोटी सी लड़की, झूले जैसी हँसी, आँखों में चमक,हाथों में टूटी हुई गुड़िया, मुँह चॉकलेट से भरा हुआ।“मैं… तेरा बचपन हूँ,” उसने कहा।जवानी थोड़ी मुस्कुराई, थोड़ी छुपी —“तू तो कब का छूटा था… अब क्या लेने आई है?”बचपन ने हाथ पकड़ा, खींच के बोला —“आई हूँ याद दिलाने...