आत्मा की खोज - तीसरी आँख से परे - 2

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अध्याय दो: अजनबी से मुलाक़ात                                        बर्फ़ की चादर ओढ़े वह वीरान घाटी जैसे समय से परे किसी दूसरी ही दुनिया में थी। हवा इतनी ठंडी थी कि साँसें भी जमने लगतीं। शरीर थक चुका था, पर मन अभी भी संघर्ष कर रहा था—शायद जीने की उम्मीद अब भी बाकी थी। आरव उस चट्टान के सहारे बैठा रहा, कभी आकाश की ओर देखता, कभी अपनी कंपकंपाती उंगलियाँ सहलाता। उसके भीतर चल रहा था—धड़कनों और सोच का एक तूफान पर भावशून्य जिसमे विचार